*किसानों ने दिखाया रूद्र रूप तो सकते में आ जायेगी सरकार
*किसानों से छल करके टिक नहीं पायेगी मप्र सरकार
*किसानों का आक्रोश, जगह-जगह हो रहे प्रदर्शन
भोपाल/स्वराज टुडे: मध्यप्रदेश की मोहन यादव सरकार ने पहले गेंहू, चने की फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदने में देरी की, जिससे लाखों किसानों ने मजबूरी में बाजार में कम भाव पर अपनी फसलों को बेचा। अब प्रदेश में मूंग की फसल को नहीं खरीदा जा रहा है। जून का महीना प्रारंभ हो गया है और प्रदेश के हर क्षेत्र में मूंग की फसल पककर आ चुकी है लेकिन अभी तक पंजीयन करने के लिए पोर्टल नहीं खुले हैं। पोर्टल नहीं खुलने से किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगी हैं। किसानों की चिंता है कि कब पोर्टल खुलेंगे और कब सरकार द्वारा खरीदी होगी।
सवाल ये भी है कि आखिर सरकार मूंग को खरीदेगी भी कि नहीं। इस बात की चिंता भी सता रही है। क्योंकि अभी तक सरकार की ओर से यह भी आश्वासन नहीं आया है कि वह कब से खरीदेगी। यहां सवाल उठता है कि आखिर कब तक मुख्यमंत्री मोहन यादव प्रदेश के किसानों को छलेंगे। एमएसपी पर मूंग की खरीदी न होने से किसानों के आंसू छलक रहे हैं। वहीं प्रदेश के सभी हिस्सों में किसानों का आक्रोश देखने को मिल रहा है। जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार की आंखे खोलने के लिए प्रशासन को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इस बार पूरे प्रदेश में मूंग की बंपर पैदावार हुई है। अनुमान है कि कोई 21 लाख टन से अधिक मूंग की पैदावार होगी। समय रहते यदि मूंग की खरीदी एमएसपी पर होती है तो किसानों को काफी राहत मिलेगी।
किसानों ने दिखाया रूद्र रूप तो सकते में आ जायेगी सरकार
मध्यप्रदेश कृषि प्रधान प्रदेश है। यहां की सत्ता की फैसला किसानों के हाथों में होता है। यदि किसान आक्रोशित है तो समझ जाना चाहिए कि सत्ता खतरे में है। बावजूद इसके मोहन यादव सरकार किसानों के साथ छल कर रही है। किसानों का गुस्सा सड़कों पर आ गया तो सरकार सकते में आ सकती है। किसानों के सब्र का इम्तिहान नहीं लेना चाहिए।
एमएसपी बढ़ाने के क्या मायने जब खरीदी ही न हो
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में मूंग के समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई है। सरकार द्वारा मूंग की एमएसपी 8,682 रूपये क्विंटल में 86 रूपये की वृद्धि की गई है। जिसके बाद अब मूंग का 2025-26 के लिए 8,768 रूपये क्विंटल का समर्थन मूल्य है। लेकिन एमएसपी बढ़ाने के क्या मायने जब खरीदी ही न हो तो। सरकार को किसानों की समस्या पर ध्यान देने की जरूरत है। एमएसपी भले ही 8,768 रूपये प्रति क्विंटल है लेकिन बाजार में यह मूंग केवल पांच हजार प्रति क्विंटल की दर से खरीदी जा रही है। इससे किसानों को मजबूरीवश 3-4 हजार रूपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। सरकार की इस लापरवाही और अनदेखी के लिए कौन जिम्मेदार है। सरकार की लापरवाही का खामियाजा किसानों का उठाना पड़ रहा है।
पहले भी खरीदी में हुई है देरी और अन्नदाता को उठाना पड़ा नुकसान
यह भी पहली बार नहीं है जब प्रदेश में अन्नदाता को छला गया हो। इससे पहले भी मूंग की खरीदी में देरी हुई है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कई किसानों का कहना है कि वो मूंग खुले बाजार में बेच चुके हैं और वो भी MSP से बेहद कम कीमत पर। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या मोहन सरकार जानबूझकर मूंग की खरीदी नहीं कर रही है। क्या व्यापारियों को लाभ दिया जा रहा है। क्या किसानों को मूंग की खेती न करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। ऐसे तमाम सवाल हैं जो लोगों के मन में उपज रहे हैं।
प्रकृति से बची तो सरकार फेर रही अरमानों पर पानी
दरअसल मूंग की खेती बड़ी ही रिस्की होती है। यह फसल लगती तो गर्मियों में है लेकिन इसकी कटाई लगभग मानसून में होती है। यही कारण है कि इस फसल को प्रकृति की मेहरबानी से देखा जाता है। वैसे तो हर साल इस फसल पर बरसात का ग्रहण लगता है। पर इस साल मानसून की थोड़ी मेहरबानी दिखा रहा है तो मोहन सरकार किसानों के अरमानों पर पानी फेर रही है। अभी भी समय है कि सरकार को किसानों की चिंता पर विचार करना चाहिए। क्योंकि जितनी जल्दी खरीदी होगी उतनी जल्दी ही किसानों का लाभ होगा।
खुले बाजार में मूंग बेचने का मजबूर किसान
एमएसपी पर मूंग का खरीदी मूल्य 8,768 रूपये प्रति क्विंटल है लेकिन बाजार में यह मूंग केवल पांच हजार प्रति क्विंटल की दर से खरीदी जा रही है, जिससे किसानों का काफी नुकसान हो रहा है। इस कीमत पर तो केवल फसल की लागत निकल पा रही है। लेकिन किसानों की मजबूरी ऐसी है कि घाटे के बावजूद बेचना पड़ रहा है।
*विजया पाठक की रिपोर्ट*
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