भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को इसरो और नासा द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह का प्रक्षेपण किया। प्रक्षेपण भारतीय समयानुसार शाम 5:40 बजे हुआ। निसार उपग्रह, दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच मानवीय कौशल और एक दशक से चल रहे सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर के आदान-प्रदान का एक संयोजन है, जिसका उद्देश्य सूर्य-समकालिक कक्षा से संपूर्ण पृथ्वी का अध्ययन करना है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ISRO और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के संयुक्त प्रयास से बनाया गया निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) सैटेलाइट GSLV Mk-II रॉकेट के जरिए 747 किलोमीटर की सूर्य-समकालिक कक्षा (Sun-Synchronous Orbit) में स्थापित किया जाएगा। आइए, जानते हैं कि यह मिशन क्यों खास है और यह क्या काम करेगा।
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VIDEO | NISAR launch: ISRO’s most advanced Earth observation satellite successfully lifts off from Sriharikota. Jointly developed by ISRO and NASA, the NISAR satellite marks a big step in strengthening India–US space collaboration.
(Source: Third party)#NISAR
(Full video… pic.twitter.com/knQo5OUrbZ
— Press Trust of India (@PTI_News) July 30, 2025
निसार क्या है?
निसार एक पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट है, जिसका वजन 2,392 किलोग्राम है। यह पहला ऐसा सैटेलाइट है जो दो अलग-अलग फ्रीक्वेंसी, NASA के L-बैंड और ISRO के S-बैंड का इस्तेमाल करता है। ये दोहरी रडार प्रणाली इसे धरती की सतह पर होने वाले बदलावों को पहले से कहीं ज्यादा सटीकता के साथ देखने में मदद करेगी। NASA के मुताबिक, ये दोनों सिस्टम धरती की सतह की अलग-अलग खासियतों, जैसे नमी, सतह की बनावट और हलचल, को मापने में माहिर हैं। इस सैटेलाइट की लागत 1.5 बिलियन डॉलर (लगभग 12,500 करोड़ रुपये) से ज्यादा है, जो इसे दुनिया के सबसे महंगे पृथ्वी अवलोकन सैटेलाइट्स में से एक बनाता है।
निसार को बनाने में 10 साल का वक्त लगा। इसमें 12 मीटर का एक खास गोल्ड मेश एंटीना लगा है, जो निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) में सबसे बड़ा है। यह ISRO के I-3K सैटेलाइट बस से जुड़ा है, जिसमें कमांड, डेटा, प्रणोदन (Propulsion), और दिशा नियंत्रण के लिए सिस्टम और 4 किलोवाट सौर ऊर्जा की व्यवस्था है।
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निसार कैसे काम करेगा?
लॉन्च होने के बाद निसार 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूर्य-समकालिक कक्षा में स्थापित होगा, जिसका झुकाव 98.4 डिग्री होगा। लेकिन यह तुरंत तस्वीरें लेना शुरू नहीं करेगा। पहले 90 दिन यह सैटेलाइट कमीशनिंग या इन-ऑर्बिट चेकआउट (IOC) में बिताएगा, ताकि यह वैज्ञानिक कार्यों के लिए तैयार हो सके। निसार का सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) धरती की सतह पर रडार तरंगें भेजेगा और उनके वापस आने का समय व फेज में बदलाव को मापेगा। यह 2 तरह के रडार का इस्तेमाल करेगा:
- L-बैंड SAR (1.257 GHz): यह लंबी तरंगों वाला रडार है, जो घने जंगलों और मिट्टी के नीचे की हलचल को देख सकता है। यह जमीन पर छोटे-छोटे बदलावों को मापने में मदद करेगा।
- S-बैंड SAR (3.2 GHz): यह छोटी तरंगों वाला रडार है, जो सतह की बारीकियों, जैसे फसलों और पानी की सतह, को कैप्चर करेगा।
निसार पहली बार SweepSAR तकनीक का इस्तेमाल करेगा, जो 242 किलोमीटर के दायरे में उच्च रिजॉल्यूशन डेटा देगा। यह हर 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन करेगा, वो भी हर मौसम में, दिन-रात, बादलों या अंधेरे के बावजूद।
🌍 Historic Launch Ahead: ISRO Set to Launch NISAR, a joint satellite with NASA !
🚀 On July 30, 2025 at 17:40 IST, ISRO’s GSLV-F16 will launch #NISAR, the first joint Earth observation satellite by ISRO & NASA, from Sriharikota.
🛰️ NISAR will scan the entire globe every 12… pic.twitter.com/4Mry076XSZ
— ISRO (@isro) July 21, 2025