कोच्चि: प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के मंसूबे कितने खतरनाक थे इसका खुलासा एनआईए के उन दस्तावेजों से चलता है जिसे अदालत में जमा कराया गया है। जानकारी के मुताबिक करीब 972 लोगों को निशाना बनाने के लिए पीएफआई ने एक लिस्ट बनाई थी जिसमें केरल के एक पूर्व जिला जज का नाम भी था।
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कैसे इतना बड़ा डेटा कलेक्ट किया?
एनआईए के इन दस्तावेजों के अनुसार पीएफआई ने अपनी गुप्त ‘रिपोर्टर्स विंग’ के माध्यम से अन्य समुदायों के लोगों के पद, नाम, आयु, तस्वीर समेत व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा की थी। एनआईए ने दावा किया कि पीएफआई की तीन इकाई हैं जिनमें ‘रिपोर्टर्स विंग’, ‘फिजिकल एंड आर्म्स ट्रेनिंग विंग/पीई’ और ‘सर्विस विंग/हिट टीम्स’ हैं। दस्तावेजों में दावा किया गया है कि पीएफआई के अर्द्ध-खुफिया विभाग के रूप में काम करने वाली ‘रिपोर्टर्स विंग’ ने समाज के प्रमुख व्यक्तियों के अलावा अन्य समुदायों, विशेषकर हिंदू समुदाय के नेताओं की निजी और व्यक्तिगत जानकारी एकत्र की, जिसमें उनकी दिन-प्रतिदिन की गतिविधियां भी शामिल थीं।
एनआईए ने अदालत से कहा, ‘‘डेटा को पीएफआई के जिला स्तर पर संकलित किया जाता है और उनके राज्य पदाधिकारियों को सूचित किया जाता है। इसके विवरण को नियमित रूप से अपडेट किया जाता है और आतंकवादी गिरोह द्वारा आवश्यकतानुसार व्यक्तियों को निशाना बनाने के लिए उपयोग में लाए जाते हैं।’’
पीएफआई के निशाने पर थे ये लोग
एनआईए की विशेष अदालत के आदेश में इन दस्तावेजों की सामग्री का उल्लेख किया गया जिसने 2022 के एस के श्रीनिवासन हत्या मामले में कुछ आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सीनियर पदाधिकारी श्रीनिवासन की 16 अप्रैल, 2022 को कथित रूप से पीएफआई के कार्यकर्ताओं ने उनकी दुकान पर हत्या कर दी थी। एनआईए ने जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अदालत से कहा कि मामले में अनेक आरोपियों से जब्त दस्तावेज करीब 972 लोगों की सूची की ओर इशारा करते हैं जिनमें एक ‘अन्य समुदाय’ के केरल के पूर्व जिला न्यायाधीश हैं और ये लोग प्रतिबंधित संगठन के निशाने पर थे।
क्या है पीएफआई?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) एक इस्लामी राजनीतिक संगठन था, जिसे सितंबर 2022 में भारत सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत पांच साल के लिए बैन लगा दिया है। सरकारी एजेंसियों ने इसे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा माना। हालांकि PFI) खुद को एक गैर-सरकारी संगठन और वंचितों, दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करने वाला एक नव-सामाजिक आंदोलन बताता था।
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गठन और उद्देश्य
PFI का गठन 22 नवंबर, 2006 को हुआ था। यह मुख्य रूप से तीन दक्षिण भारतीय मुस्लिम संगठनों को मिलाकर बना था। केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (NDF), कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी (KFD) और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई। PFI का हेडक्वॉर्टर नई दिल्ली में था। संगठन का कहना था कि उसका मकसद दबे-कुचले और हाशिए पर मौजूद समुदायों, खासकर मुसलमानों, दलितों और आदिवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है।
विवाद और आरोप
पीएफआई अपनी स्थापना के बाद से ही लगातार विवादों में रहा। इस पर कई गंभीर आरोप लगते रहे हैं, जो इसके प्रतिबंध का आधार बने। सरकार के अनुसार, PFI और उसके सहयोगी संगठन गुप्त रूप से एक ऐसे एजेंडे पर काम कर रहे थे जो समाज के एक विशेष वर्ग को कट्टर बनाकर लोकतंत्र की अवधारणा को कमजोर करता है। इस पर आतंकवादी संगठनों जैसे इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) और प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) से संबंध रखने के आरोप लगे।
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सितंबर 2022 में लगा बैन
सितंबर 2022 में NIA और अन्य एजेंसियों ने 15 राज्यों में पीएफआई के ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की और 100 से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। इसके बाद, गृह मंत्रालय ने इन आरोपों के आधार पर पीएफआई और उसके कई सहयोगी संगठनों, जैसे रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), और ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (AIIC) को 5 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया।